सांस लेने कि परेशानी से जूझने वाले भारत के कई शहरों में, नई दिल्ली हर साल की सूची में सबसे ऊपर रहती है. यही कारण है कि सर्दियां के आते ही प्रदूषण का खतरा सबसे ज्यादा हो जाता है. मौजूदा समय में प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए प्रमुख मुद्दों में से एक है. पर अब दिल्ली में पराली से प्रदूषण का “THE END”.
दिल्ली में होने वाली प्रदूषण का एब बड़ा और एहम कारण किसानो द्वारा जलाई गई परली होता है. किसान एक फसल के बाद अपनी जमीन खाली करने और अगली फसल की तैयारी के लिए, बची हुई पराली को आग लगा देतें है. इस वजह से प्रदुषण का स्तर काफी बढ़ जाता है. कई रिपोर्ट की माने तो UP, Punjab, Haryana से सबसे ज्यादा परालीजलाई जाती है और उसका असर दिल्ली और अन्य राज्य पर पड़ता है.
प्रदुषण रोकना कितना जरूरी ?
वायु प्रदूषण के कारण एक साल में 1.2 मिलियन भारतीय अपनी जान गवांते है. प्रदूषण, चाहे वह हवा, जमीन, आवाज या पानी हो, हमेशा लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है. चारों ओर बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण लोगों के फेफड़ों और सांस से संबंधित कई तरह की बीमारियाँ सामने आती हैं.
दिल्ली सरकार की नयी तकनीक
इस प्रदुषण से लड़ने के लिए अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली सरकार पुरे जोर-शोर से तैयारी करती दिख रही है. दिल्ली सरकार ने बायो-डीकंपोजर तकनीक के जरिये भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के साथ मिलकर एक समाधान निकाला है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हाल ही में एक रासायनिक समाधान निकाला जिसे फसल के अवशेषों पर बायो-डिकम्पोजर तकनीक के रूप में छिड़का जा सकता है. दिल्ली सरकार राज्य के खेतों में रासायनिक घोल का छिड़काव करेगी. इससे पराली जलने से बचा जा सकेगा और होने वाली प्रदूषण को रोका जा सके.
IARI के निदेशक डॉ अशोक कुमार सिंह ने कहा, “हम पिछले 5 वर्षों से इस उत्पाद पर काम कर रहे थे, हमारा मानना है कि बड़े पैमाने पर वितरण यहां महत्वपूर्ण है. यह उत्पाद दो उद्देश्यों को पूरा करेगा – मिट्टी को उपजाऊ बनाएगा और प्रदूषण के खतरे से जूझेगा.”
दिल्ली सरकार का कहना है कि इस तकनीक से दिल्ली में पराली से होने वाले वायु प्रदूषण के संकट का समाधान होगा.
इसमें किसानो का क्या फ़ायदा ?
सबसे अच्छी बात यह है कि दिल्ली सरकार एक पैसा भी किसानो से नहीं लेगी. दिल्ली सरकार के कर्मचारी किसान के घर घर जाएंगे. किसानो से नयी तकनीक का इस्तेमाल करने की इज़ाजत लेंगे. ट्रेक्टर से ले कर केमिकल तक का खर्चा दिल्ली सरकार उठाएगी.

संस्थान के वैज्ञानिक आठ माइक्रोब्स की रचना से एक डीकंपोजर कैप्सूल लेकर आए हैं. इसे पूसा डीकंपोज़र भी कहा जाता है. ये कैप्सूल फसल अवशेषों को जलाए बिना अगली फसल की बुवाई के लिए जमीन तैयार करने में मदद करेंगे. चार कैप्सूल, जिनकी कीमत सिर्फ 20 रुपये होगी, का उपयोग एक हेक्टेयर भूमि के लिए 25 लीटर घोल में किया जा सकता है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वह केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से आग्रह करेंगे कि वे पड़ोसी राज्यों को पूसा डीकंपोजर का उपयोग करने के लिए कहें.
दिल्ली सरकार का यह कदम काफी सराहनिए है. यह एक सवाल भी उठाता है किअगर दिल्ली सरकार इतनी हल्दी इस परेशानी का हल ले कर आई है, तो आखिर बाकीसरकारों के क्या मजबूरी रही की वो अब तक कोई लाभदायक तरीका नहीं निकल सकी. शायद इसका कारण “पोलिटिकल विल” है.
दिल्ली सरकार का पराली से निपटने का ये कदम काफी सराहनिए है. Click To Tweetमौजूदा समय में प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए प्रमुख मुद्दों में से एक है. प्रदूषण के अनेक श्रेणियों का अस्तित्व, इंसानो से जाने-अनजाने में किये गलत काम का परिणाम हिं है. प्रदूषण की इस भारी समस्या का समाधान सभी लोगों के समर्थन और प्रयासों से ही हो सकता है.
अब दिल्ली में पराली से प्रदूषण का “THE END” Click To TweetAuthor : The Rising India Team
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